Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2016

शैक्षिक अनुसंधान

अनुसंधान अनुसंधान एक ऐसी व्यवस्था है जिसके द्वारा नवीन तथ्यों की खोज की जाती है। तथा प्राचीन तथ्यों की पुन: व्याख्या की जाती है। - पी वी यंग नवीन ज्ञान की प्रप्ति के व्यवस्थित प्रयास को अनुसंधान कहते हैं। - रैडमैन तथा मोरी मौलिक अनुसंधान( Fundamental research) इस प्रकार के अनुसंधान में शिक्षा समबन्धी आधारभूत सिद्धान्तों नियमों तथा तथ्यों की खोज की जाती है। विशेषताएं व्यवस्थित अनुसंधान एवं विशेषज्ञों का क्षेत्र प्राचीन अधिगम शिक्षण सिद्धान्तो की नवीनतम विवेचना Applied research अनुप्रयुक्त अनुसंधान इसका सम्बन्ध व्यवहारिक समस्याओं के वर्तमानकालिक समाधान से होता है। मौलिक अनुसंधान के माध्यम से खोजे गये सिद्धान्तों व नियमों की विवेचना वर्तमान संदर्भ में किसी क्षेत्र व समस्या को केन्द्र मानकर की जाती है। इसमें वास्तविक परिस्थितियों मे नियमों की सार्थकता व उपयुक्तता का अध्ययन किया जाता है। विशेषताएं नियमों व सिद्धान्तों की दैनिक कार्य क्षेत्र की सम्स्याओं का समाधान। वर्तमान हेतू नीति निर्धारण प्रक्रिया मौलिक अनुसंधान पर आधारित। Action rese

शिक्षा के मनोवैज्ञानिक आधार Psychological foundation of education

शिक्षा का मनोवैज्ञानिक आधार अधिगम अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त सूझ का सिद्धान्त Gestalt theory, Insight theory गेस्टाल्टवाद पूर्णाकार समग्रता जर्मन शब्द वर्दिमर कोहलर कोफका लेविन दवारा सिद्धान्त की विशेषताएं 1 इसमे व्यकति समस्या का पूर्ण रूप से अवलोकन करता है। 2 यान्त्रिक क्रियाओं की अपेक्षा उददेश्य पूर्ण व चेतना बद्ध प्रयास पर बल दिया। 3 समस्या का समाधान अचानक व्यक्ति के मस्तिष्क मे आता है। 4 प्रयास व त्रुटि व अनुबन्धन द्वारा सीखने को नही माना। 5 अधिगम हमेशा उददेश्य पूर्ण खोजपरक एवं सृजनात्मक होता है। 6 सूझ के लिए समस्यातमक परिस्थिती आवश्यक है। 7 पूर्व अनुभव सहायक। 8 सूझ के लिए अभ्यास की आवश्यकता नही। 9 इस प्रकार के अधिगम का दूसरी स्थिति मे transfer हो सकता है। प्रयोग इन्होने अपना प्रयोग एक चिम्पेन्जी पर किया उसको एक पिंजरे में बन्द किया और छत से केला लटका दिया तथा एक लकड़ी का बक्सा रख दिया। सुल्तान ने उछल कर केले को पाने का प्रयास किया परन्तु वह असफल रहा। वह कोने में बैठ गया और पूरी परिस्थिति का सही से अवलोकन किया तभी उसके मस्तिष्क में एक विचार

शिक्षा के सामाजिक आधार Sociological basis of education

शिक्षा के सामाजिक आधार शिक्षा तथा समाज मे अटूट सम्बन्ध है। जैसा समाज होगा वैसी ही वहां की शिक्षा व्यवस्था होगी। आधूनिक समाज विज्ञान पर विशेष बल आदर्शवादी समाज आध्यात्मिक विकास पर बल भौतिकवादी समाज भौतिक सम्पन्नता पर बल प्रयोजनवादी समाज क्रिया एवं व्यवहार पर बल जन्तन्त्रवादी समाज लोकतान्त्रिक आदर्शो पर आधारित शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है। समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल होता है। शिक्षा का समाज पर प्रभाव सामाजिक विरासत का संरक्षण सामाजिक भावना को जाग्रत करना समाज का राजनैतिक विकास समाज का आर्थिक विकास सामाजिक नियन्त्रण् सामाजिक परिवर्तनों को बढ़ावा सामाजिक सुधार बालक का सामाजीकरण समाज का शिक्षा पर प्रभाव शिक्षा के स्वरूप का निर्धारण शिक्षा के उददेश्य का निर्धारण शिक्षा की पाठयचर्या का निर्धारण शिक्षण विधियों का निर्धारण विद्यालय के स्वरूप का निर्धारण प्रबन्धन के तरीकों का निर्धारण शैक्षिक समाजशास्त्र की प्रकृति शैक्षिक समाजशास्त्र शैक्षिक समस्याओं के लिए समाजशास्त्र का प्रयोग है। यह शिक्षाशास्त्री

रविन्द्रनाथ टैगोर

रविन्द्रनाथ टैगौर इन्हे विश्व कवि के नाम से जाना जाता है। ये मानवतावादी प्रकृतिवादी प्रकृति के प्रेमी आदर्शवादि आत्मा परमात्मा में विश्वास . प्रयोजनवादी जीवन के व्यवहारिक पक्ष पर बल यथार्थवादी भैतिक जगत में विश्वास थे। 1913 में गीतांजली के लिए नोबेल पुरूस्कार मिला इनके दर्शन को विश्व बोध दर्शन कहते हैं। ज्ञान मीमांसा ये भौतिक व आध्यात्मिक दोनो सत्य को मानते हैं। भौतिक वस्तुओं व क्रियाओं का ज्ञान भौतिक मानते थे। अर्थात इनद्रियों दवारा आध्यात्मिक तत्वों का ज्ञान योग दवारा। योग मार्ग में सबसे सरल व महत्वपूर्ण मार्ग प्रेम मार्ग है। ये उपनिषदीय दर्शन के पोषक थे। तत्व मीमांसा सृष्टि ईश्वर के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है। ईश्वर को साकार और निराकार दोनों रूपों में माना। आत्मा के तीन कार्य हैं। आत्म रक्षा में प्रवृत्त करना । ज्ञान विज्ञान की खोज व अनन्त ज्ञान की प्राप्ति में प्रवृत्त करना । अनन्त रूप को समझनें में प्रवृत्त करना। वह ब्रहम को मानव रुप में परम पुरूष मानते हैं। मूल्य मीमांस प्रेम से ही मानव मानव की सेवा करता है। मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है। शिक्षा के उददेश्य

स्वामी विवेकानन्द

नरेन्द्रनाथ दत्त बचपन का नाम पिता विश्वनाथ दत्त जन्म १२ जनवरी 1865 माता भुवनेश्वरी देवी उठो जागो तब तक न रूको जब तक कि परम लक्ष्य की प्राप्ति न कर लो। तुमको कार्य के समस्त क्षेत्रों में व्यावहारिक होना पडेगा सिद्धान्तो के ढेर ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है। प्राणी एक मन्दिर है लेकिन मनुष्य एक सबसे उंचा मन्दिर है। वेदान्त की और लोटो। खाली पेट धर्म नही होगा। Man making education नव्य वेदान्त दर्शन ये आध्यात्मिक और भौतिक ज्ञान दोनों को सत्य मानते हैं। व मानव सेवा सबसे बडा धर्म इनकी शिक्षा को मानव निर्माण की प्रक्रिया कहा जाता है। मन की एकाग्रता के दवारा शिक्षा गुरू रामकृष्ण परमहंस रामकृष्ण् मिशन की स्थापना बैलूरमठ की स्थापना की 1893 में शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया। तत्व मीमांसा आत्मा ब्रहम का अंश है। मनुष्य को मन शरीर तथा आत्मा का योग माना आत्मा को सर्वशक्तिमान माना आध्यात्मिक विकास के लिए भारतीय ज्ञान एवं क्रिया का समर्थन मूल्य मीमांसा मानव सेवा सबसे बडा धर्म है। वस्तु जगत व सूक्ष्म जगत दोनों का ज्ञान सही। वस्तु जगत ब्रहम दवारा निर्मित हैं। अन्तिम उ

अरविन्द

अरविंद Books Life divine The mother on the Veda Light of Yoga on education Essays on Geeta The national value of arts Arvindo – Integeral education Spiritual teaching and yoga practice समग्र योग दर्शन अरविंद ने गीता के कर्मयोग तथा ज्ञान योग की व्याख्या की है उदात सत्य का ज्ञान (Realization of sublime truth) समग्र जीवन दृष्टि दवारा तत्व मीमांसा ईश्वर सृष्टि का निर्माता है।  मानव जीवन का अन्तिम उददेश्य सत् चित आनन्द की प्राप्ति है। ज्ञान मीमांसा भौतिक और आध्याित्मक ज्ञान के भेद को जानना ही ज्ञान है। ज्ञान के प्रकार द्रव्य ज्ञान साधारण ज्ञान आत्मज्ञान उच्च ज्ञान वस्तु जगत का ज्ञान उददेश्य नैतिक सांसकृतिक बौद्धिक व्यावसायिक आध्यात्मिक विकास पर बल। मानसिक विकास पर बल पाठयचर्या स्वतन्त्र वातावरण का समर्थन किया । रूचि और याग्यता के अनुसार सभी विषयों को शामिल किया जाना चाहिए इतिहास भूगोल समाजशास्त्र गणित विज्ञान अर्थशास्त्र वाणिज्य कला खेलकूद व्यायाम कृषि ध्यान योग दर्शन आदि। शिक्षण विधि योग क्रिया व्याख्यान कहानी पुस्तकीय ज्ञान

महात्मा गांधी

महात्मा गांधी सर्वोदय दर्शन प्रयोजनवादी कार्य विधि आदर्शवादी शिक्षा के उददेश्य प्रकृतिवादी करके सीखना वातावरण से अनुकूलन मानवतावादी 3r Reading Writing Arithmetic 3h Hand Heart Head की शिक्षा बेसिक शिक्षा का प्रतिपादन किया। 7 से 14 बर्ष तक के बच्चों के लिए। जन शिक्षा पर बल स्त्री शिक्षा पर बल स्त्री व पुरूष की समान शिक्षा धार्मिक व नैतिक शिक्षा पर बल व्यावसायिक शिक्षा पर बल तत्व मीमांसा गीता के अनन्य भक्त थे गीता के अनुसार पुरूष ईश्वर और प्रकृति पदार्थ दो मूल तत्व हैं। आत्मा परमात्मा का अंश है। मनुष्य शरीर मन व आत्मा के योग से बना है। ईश्वर नित्य है अत: सत्य पदार्थ अनित्य है अत: असत्य जीवन का उददेश्य ज्ञान अथवा मोक्ष है। मूल्य मीमांसा गीता के अनुसार निष्काम कर्म योग में विश्वास नैतिक चरित्र को महत्व श्रम नैतिकता व चरित्र के दवारा भौतिक सुख समृद्धि इसके लिए 11 उपाय सत्य अहिंसा ब्रहमचर्य अस्वाद अस्तेय अपरिग्रह अभय अस्पर्शता सर्वधर्म समभाव विनम्रता कायिक श्रम अफ्रीका में Tolstoy farm की स्थापना की शिक्षा के उददेश्य शारीरिक सामाजिक नैतिक सांसकृतिक बौद

इस्लाम दर्शन

इस्लाम दर्शन प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब पांच स्तम्भ् कलमा, रोजा नमाज जकात हज विशेश्ताएं अदैतवादी दर्शन निराकार खुदा में विश्वास आध्यात्मिक और भौतिक दोनो अनुशासनवादी दर्शन ज्ञानवादी द्रष्टिकोण सांसारिक ऐश्वर्य की प्राप्ति शारीरिक भौतिक व्यावसायिक आर्थिक विकास इस्लाम का प्रसार उत्तम चरित्र का निर्माण राजनैतिक एवं राज्य विस्तार का उददेश्य संसकार विस्मिल्लाह खानी 4 वर्ष 4 माह 4 दिन पाठयक्रम दर्शशास्त्र छोटे बच्चों के लिए लिखना पढना अंक गणना वर्णमाला कुरान की आयतें भाषा  अरबी फारसी शिक्षण विधि  अनुकरण पुस्तक अध्ययन व्याख्यान भाषण यात्रा प्राथमिक शिक्षा मकतब उच्च शिक्षा  मदरसा शिक्षा की बिषेशताएं व्यावहारिक शिक्षा नि शुल्क शिक्षा व्यक्तिगत सम्पर्क कक्षा नायकीयी पद्धति मदरसों को अनुदान बादशाह

वेदान्त दर्शन

वेदान्त शंकर वेदान्त का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान का अन्त यह ब्रहम माया के आधार पर जगत की रचना करता है। जीव व ब्रहम में कोइ अन्तर नही है। ज्ञान दो प्रकार का है परा व अपरा तीन साधन श्रवण सुनना मनन अभ्यास करना निधिध्यासन दैनिक प्रयोग करना वेदों का ज्ञान उपनिषदों में है। इसी चिन्तन का अन्तिम सार वेदान्त है। इसे अदवैत वेदान्त भी कहते हैं। इसमें वेद अरण्यक व उपनिषदों का सार है । प्रकृति महत अहंकार त्रय दुख सांख्य पंचमहाव्रत त्रिरत्न जैन 4 आर्य सत्य बौद्ध अष्टांग मार्ग बौद्ध वेदान्त की बिशेषताएं ब्रह्म की सत्ता वास्तविक है। आत्मा ब्रह्म का अंश है। ब्रहम जीव अभिन्न है। पुर्नजन्म पर विश्वास जगत नाशवान व असत्य मूल्य मीमांसा सामाजिक मूल्यों पर बल दो प्रकार की मुक्ति जीवन मुक्ति मोक्ष विदेह मुक्ति मृत्यु शिक्षा वही है जो मुक्ति दिलाये पाठयक्रम अपरा भाषा चिकित्साशास्त्र गणित क्रियाएं आससन व्यायाम भोजन ब्रहमचर्य परा ब्रहम उपनिषद साहित्यिक धर्म दर्शन का अध्ययन क्रियाएं यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारण ध्यान समाधि शिक्षण विध

जैन दर्शन

जैन दर्शन जैन जिन शब्द से बनाया गया है। जैन साहित्य में इसका अर्थ है इन्द्रियों को जीतने वाला प्रवर्तक ऋषभदेव(1) पार्श्वनाथ्(23) महावीर जैन (24) जन्म कुंडाग्राम पिता सिद्धार्थ माता त्रिशला पत्नि यशोदा पुत्री अन्नोजा प्रियदर्शनी जान धर्म अहिंसा पर सबसे अधिक बल देता है। यह भौतिक मान्यताओं की आलोचना करता है। पंच महाव्रत सत्य अहिंसा अस्तेय अपरिग्रह ब्रहमचर्य वेदों की सत्ता पर विश्वास नही है। वैदिक मान्यताओं की आलोचना करता है। अनीश्वर दर्शन त्रिरत्न पर सर्बाधिक बल सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक चरित्र यह दो मतो मे बटा है। श्वेताम्बर दिग्मबर ज्ञान मीमांसा पांच प्रकार के ज्ञान मतिज्ञान श्रुतिज्ञान अवधिज्ञान मन:पर्याय ज्ञान कैवल्य जीव व अजीव को जानना ही ज्ञान है। शिक्षा सांसारिक धार्मिक व व्यावसायिक सभी प्रकार के ज्ञान पर बल जीवन का अन्तिम लक्ष्य कैवल्य है।(मोक्ष् जीव की अजीव से मुक्ति है।) इसके लिए त्रिरत्न यह दर्शन सांख्य दर्शन से प्रभावित है। आत्मा मे विश्वास मोक्ष के लिए त्रिरत्न पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास मूल्य मीमांसा शाश्वत एवं वास्तविक अहिंसा त

बौद्ध दर्शन

बौद्ध दर्शन प्रवर्तक                          गौतम बुद्ध जन्म             लुम्बनी कपिलवस्तु पिता                      शुद्धोधन पत्नी                            यशोधरा पुत्र                                    राहुल प्रथम उपदेश                   सारनाथ भाषा                                पालि निर्वाण                            बट बृक्ष के नीचे बोध गया। संस्कार (ceremony) प्रवेश लेने वाला द्वारपाल कहलाता है। पवज्जा 8 बर्ष में प्रवेश के समय श्रवण या सामनेर कहा जाता था 12 बर्ष वाद उपसम्पदा 20 बर्ष की आयु में यह नास्तिक दर्शन है। आत्मा में भी विश्वास नही करता पुनर्जन्म में विश्वास 4 आर्य सत्य व अष्टांग मार्ग त्रिपिटिक बौद्ध धर्म में दो मत हैं। हीनयान महायान 4 आर्य सत्य दु:ख जीवन दुखमय है। दु:ख समुदाय इन दखों का कारण है। दु:ख निरोध दुखों का अन्त सम्भव है। दु:ख निरोधगामी प्रतिपदा दुखों के अन्त के लिए अष्टांगिक मार्ग है। ज्ञान का साधन शरीर मन व चेतना है। सच्चे ज्ञान से निर्वाण प्राप्त होता है। दुखों का कारण अज्ञानता है। ज्ञान मीमांसा 3 प्रकार प्रत्य