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वेदान्त दर्शन



वेदान्त शंकर
वेदान्त का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान का अन्त
यह ब्रहम माया के आधार पर जगत की रचना करता है।
जीव व ब्रहम में कोइ अन्तर नही है।
ज्ञान दो प्रकार का है
परा व अपरा
तीन साधन
श्रवण सुनना
मनन अभ्यास करना
निधिध्यासन दैनिक प्रयोग करना

वेदों का ज्ञान उपनिषदों में है। इसी चिन्तन का अन्तिम सार वेदान्त है।
इसे अदवैत वेदान्त भी कहते हैं। इसमें वेद अरण्यक व उपनिषदों का सार है
। प्रकृति
महत
अहंकार
त्रय दुख सांख्य

पंचमहाव्रत त्रिरत्न जैन
4 आर्य सत्य बौद्ध
अष्टांग मार्ग बौद्ध

वेदान्त की बिशेषताएं
ब्रह्म की सत्ता वास्तविक है।
आत्मा ब्रह्म का अंश है।
ब्रहम जीव अभिन्न है।
पुर्नजन्म पर विश्वास
जगत नाशवान व असत्य

मूल्य मीमांसा
सामाजिक मूल्यों पर बल
दो प्रकार की मुक्ति
जीवन मुक्ति मोक्ष
विदेह मुक्ति मृत्यु
शिक्षा वही है जो मुक्ति दिलाये

पाठयक्रम
अपरा भाषा चिकित्साशास्त्र गणित
क्रियाएं आससन व्यायाम भोजन ब्रहमचर्य
परा ब्रहम उपनिषद साहित्यिक धर्म दर्शन का अध्ययन
क्रियाएं यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारण ध्यान समाधि

शिक्षण विधियां
आन्तरिक साधन मन बुद्धि चित्त अहंकार
बाहय साधन ज्ञानेन्द्रियां कर्मेन्द्रियां
शिक्षा के उददेश्य 
मोक्ष प्राप्ति
शारीरिक विकास
इन्द्रिय विकास
मानसिक विकास
नैतिक विकास
धार्मिक विकास आाध्यात्मिक विकास
ज्ञान के स्त्रोत
प्रत्यक्ष
अनुमान
शब्द व तर्क
आचार्य अहं ब्रह्मास्मि

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