पिता विश्वनाथ दत्त
जन्म १२ जनवरी 1865
माता भुवनेश्वरी देवी
उठो जागो तब तक न रूको जब तक कि परम लक्ष्य की प्राप्ति न कर लो।
तुमको कार्य के समस्त क्षेत्रों में व्यावहारिक होना पडेगा सिद्धान्तो के ढेर ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है।
प्राणी एक मन्दिर है लेकिन मनुष्य एक सबसे उंचा मन्दिर है।
वेदान्त की और लोटो।
खाली पेट धर्म नही होगा।
Man making education
नव्य वेदान्त दर्शन
ये आध्यात्मिक और भौतिक ज्ञान दोनों को सत्य मानते हैं। व मानव सेवा सबसे बडा धर्मइनकी शिक्षा को मानव निर्माण की प्रक्रिया कहा जाता है।
मन की एकाग्रता के दवारा शिक्षा
गुरू रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण् मिशन की स्थापना
बैलूरमठ की स्थापना की
1893 में शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया।
तत्व मीमांसा
आत्मा ब्रहम का अंश है। मनुष्य को मन शरीर तथा आत्मा का योग मानाआत्मा को सर्वशक्तिमान माना
आध्यात्मिक विकास के लिए भारतीय ज्ञान एवं क्रिया का समर्थन
मूल्य मीमांसा
मानव सेवा सबसे बडा धर्म है। वस्तु जगत व सूक्ष्म जगत दोनों का ज्ञान सही।वस्तु जगत ब्रहम दवारा निर्मित हैं। अन्तिम उददेश्य मुक्ति की प्राप्ति है। मनष्य को ईश्वर का मन्दिर माना ।
ज्ञान कर्म भक्ति व राज योग दवारा आत्मानुभूति।
शिक्षा के उददेश्य
शारीरिक मानसिक व बैद्धिक विकास नैतिक व चारित्रिक विकास व्यावसायिक विकास समाज सेवा की भावना का विकास राष्टिय एकता का विकास धार्मिक व आध्यात्मिक विकास बालक अपने आप को शिक्षित करता है।पूर्णता को प्राप्त करना
आत्मनिर्भरता
आत्मविश्वास
गुरूकुल प्रणाली का समर्थन
पाठयक्रम शारीरिक विकास के लिए खेलकूद व्यायाम
मानसिक भाषा कला इतिहास संगीत भूगोल गणित विज्ञान
जोभी अच्छा मिले पाठयचर्या में शामिल करो
भारतीय धर्म दर्शन को अनिवार्य स्थान
भाषा मात्रभाषा अंग्रेजी संस्कृत प्रादेशिक भाषायें भजन कीर्तन सत्संग ध्यान
शिक्षण् विधि
अनुकरणतर्क विचार विमर्श निर्देशन व परामर्श प्रदर्शन व प्रयोग प्रत्यक्ष व्याख्यान योग को सर्वोत्तम माना ।
अनुशासन
आत्मानुशासन को मानाअनुशासित वह है जो आत्मा से प्रेरित होकर कार्य करता है।
शिक्षक
गुरू ग्रहवास को समर्थनअध्यापक के साथ व्यक्तिगत सम्पर्क होना जरूरी है।
Friend, philosopher, guide
शिक्षक को केवल बालकों की सेवा करनी चाहिए। अध्यापक का कार्य केवल जाग्रत करना ही है।
विदालय
गुरू ग्रह प्रणाली के समर्थक परन्तु यह व्यावहारिक नही। विदालय का वातावरण शुद्ध होना चाहिए।शिक्षार्थी ब्रहमचर्य का पालन करने वाला सीखने की प्रबल इच्छा गुरू में श्रद्धा
जनशिक्षा के समर्थक शिक्षा सबके लिए होनी चाहिए।
स्त्री शिक्षा स्त्रियों के लिए उतनी ही लगन से शिक्षा होनी चाहिए जितना कि पुरूषों की ।
इन्होंने सह शिक्षा का विरोध् किया।
स्त्रियों के विदालय अलग होने चाहिए।
विभिन्नता में एकता की खोज।
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