बौद्ध दर्शन
प्रवर्तक गौतम बुद्धजन्म लुम्बनी कपिलवस्तु
पिता शुद्धोधन
पत्नी यशोधरा
पुत्र राहुल
प्रथम उपदेश सारनाथ
भाषा पालि
निर्वाण बट बृक्ष के नीचे बोध गया।
संस्कार (ceremony)
प्रवेश लेने वाला द्वारपाल कहलाता है।पवज्जा 8 बर्ष में प्रवेश के समय श्रवण या सामनेर कहा जाता था
12 बर्ष वाद उपसम्पदा 20 बर्ष की आयु में
यह नास्तिक दर्शन है।
आत्मा में भी विश्वास नही करता
पुनर्जन्म में विश्वास
4 आर्य सत्य व अष्टांग मार्ग
त्रिपिटिक
बौद्ध धर्म में दो मत हैं।
हीनयानमहायान
4 आर्य सत्य
दु:ख जीवन दुखमय है।दु:ख समुदाय इन दखों का कारण है।
दु:ख निरोध दुखों का अन्त सम्भव है।
दु:ख निरोधगामी प्रतिपदा दुखों के अन्त के लिए अष्टांगिक मार्ग है।
ज्ञान का साधन शरीर मन व चेतना है।
सच्चे ज्ञान से निर्वाण प्राप्त होता है।
दुखों का कारण अज्ञानता है।
ज्ञान मीमांसा
3 प्रकारप्रत्यक्ष
अनुमान
सत्व ज्ञान
तत्व मीमांसा
ये पदार्थ संसार और आध्यात्मिक संसार दोनो को वास्तविक मानते हैं।यह अनात्मवादी तथा अनीश्वरवादी दर्शन है।
पाठक्रम
व्यायाम भाषा आयुर्वेद शल्य वास्तुकला शिल्प तकनीकी शिक्षा।कर्मप्रधान पाठयक्रम
शिक्षण विधियां(Teaching Methods)
चर्चा व्याख्या चिन्तन मनन स्वाध्याय व्याख्यान मौखिक प्रवचन सम्मेलन भ्रमण
अनुशासन
कठोर अनुशासन पर बलविदालय
मठ व बिहारों में शिक्षा दी जाती थी ।नालन्दा पूर्वी बंगाल
तक्षशिला रावलपिन्डी के पास
बल्लभी गुजरात
विक्रमशिला मगध
पतन के कारण
मुस्लिम शासकों दवारा केन्द्रों को नष्ट करनाभिक्षुओं का चारित्रिक पतन
श्रम की उपेक्षा
अष्टांग मार्ग
1. सम्यक दृष्टि2. सम्यक संकल्प
3. सम्यक आजीविका
4. सम्यक वचन
5. सम्यक कर्म
6. सम्यक व्यायाम
7. सम्यक स्मृति
8. सम्यक समाधि
शिक्षा के उददेश्य
शारीरिक स्वास्थ्यधार्मिक भावना
चरित्र निर्माण
निर्वाण की प्राप्ति
अष्टांगिक मार्ग पर बल
आचार्य आचरण की शिक्षा देते थे।
उपाध्याय शिक्षण की जिम्मेदारी
त्रिरतन
बुद्ध
धम्म
संध
धम्म
संध
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