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जैन दर्शन



जैन दर्शन
जैन जिन शब्द से बनाया गया है। जैन साहित्य में इसका अर्थ है इन्द्रियों को जीतने वाला
प्रवर्तक ऋषभदेव(1)
पार्श्वनाथ्(23)
महावीर जैन (24)
जन्म कुंडाग्राम
पिता सिद्धार्थ
माता त्रिशला
पत्नि यशोदा
पुत्री अन्नोजा प्रियदर्शनी

जान धर्म अहिंसा पर सबसे अधिक बल देता है।
यह भौतिक मान्यताओं की आलोचना करता है।
पंच महाव्रत सत्य अहिंसा अस्तेय अपरिग्रह ब्रहमचर्य
वेदों की सत्ता पर विश्वास नही है।
वैदिक मान्यताओं की आलोचना करता है।

अनीश्वर दर्शन
त्रिरत्न पर सर्बाधिक बल
सम्यक दर्शन
सम्यक ज्ञान
सम्यक चरित्र
यह दो मतो मे बटा है।
श्वेताम्बर
दिग्मबर

ज्ञान मीमांसा
पांच प्रकार के ज्ञान
मतिज्ञान
श्रुतिज्ञान
अवधिज्ञान
मन:पर्याय ज्ञान

कैवल्य
जीव व अजीव को जानना ही ज्ञान है।

शिक्षा
सांसारिक धार्मिक व व्यावसायिक सभी प्रकार के ज्ञान पर बल
जीवन का अन्तिम लक्ष्य कैवल्य है।(मोक्ष् जीव की अजीव से मुक्ति है।)
इसके लिए त्रिरत्न
यह दर्शन सांख्य दर्शन से प्रभावित है।
आत्मा मे विश्वास
मोक्ष के लिए त्रिरत्न
पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास
मूल्य मीमांसा
शाश्वत एवं वास्तविक
अहिंसा तपस्या व्रत उपवास आदि जीवन के मूल्य होने चाहिए।

छात्र
श्रावक सांसारिक जीवन के लिए तेयार होता है।
श्रमण पंच महाव्रतों का पालन करता है। ब्रहमचारी ।
बालक के व्यकतितव का आदार करते हैं।
बालक का शरीर उसके पुनर्जम के कर्मो का फल है।
भोतिक तत्व को पुदगल कहते हैं।

पाठयचर्या
व्यावहारिक
ज्ञानात्मक एवं आध्यात्मिक
विज्ञान गणित भाषा व्याकरण कला

शिक्षण विधियां
प्रयोग
स्वाध्याय
प्रत्यक्ष
वैज्ञानिक

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